सत्ता को गंभीर चुनौती

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले में करीब 40 जवानों की हत्या कर आतंकवादियों ने देश की सरकार को कड़ी चुनौती दी है। यह चुनौती ऐसे समय दी गई है जब आम चुनाव एकदम नजदीक हैं। इसलिए मौजूदा सरकार के कंधों पर चुनाव के साथ-साथ इस हमले के गुनहगारों को कड़ा सबक सिखाने की भी बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। इस हमले की हालांकि देश ही नहीं विदेशों में भी कड़ी आलोचना हो रही है लेकिन अब वह समय आ गया है जब पाक द्वारा प्रायोजित आंतकवाद को ऐसा संदेश दिया जाये ताकि भविष्य में आतंकवादियों के आका हमला करने से पहले सौ बार सोचें। स्मरणीय है कि जब उरी के सैन्य कैंप पर आतंकवादियों ने हमला किया था तब सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी और पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर बड़ी संख्या में आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला कर आतंकियों को मार गिराया था। अब एक बार फिर ऐसी ही सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों को कड़ा सबक सिखाने की जरूरत है। शायद पिछली सर्जिकल स्ट्राइक से आतंकवादियों ने कोई खास सबक नहीं लिया इसलिए अबकी बार इसका दायरा बड़ा करने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि भारत में आतंकवाद की धरती पाक अधिकृत कश्मीर का वह हिस्सा है जहां बड़ी संख्या में आतंकवादी शिविर चल रहे हैं। इन शिविरों में जैश-ए-मुहम्मद और दूसरे आतंकवादी संगठनों के शिविरों में भारी संख्या में आतंकवादी ट्रेनिंग ले रहे हैं। जब तक इन सभी आतंकवादी शिविरों को नेस्तनाबूद नहीं किया जाता तब तक आतंकवादियों को कड़ा सबक नहीं मिलेगा। इसलिए इस बार की सर्जिकल स्ट्राइक में पीओके की धरती से सारे आतंकवादी शिविरों को उखाड़ फेंकने का एजेंड़ा बनाना होगा।


इस एजेंड़े में आतंकवादियों पर इतनी बड़ी कार्रवाई करनी होगी जिससे उनका खात्मा ही पूरी तरह हो जाये। ज्ञात रहे जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत जैसे दूसरे राजनीतिक दल भी हैं जो भारत में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियों को संरक्षण देते हैं। हालांकि तत्कालीन भारत सरकार ने ऐसे दलों पर भी शिकंजा कसा है लेकिन इनकी गतिविधियों पर पूरी तरह लगाम नहीं लगी है। जब तक ऐसे दलों पर पूरी तरह लगाम नहीं लगेगी तब तक जम्मू-कश्मीर में स्थानीय आतंकवाद को हवा मिलती रहेगी। यही महत्वपूर्ण फैक्टर है जिसके चलते पाकिस्तान से आये आतंकवादी स्थानीय आतंकवादियों की मदद से आतंकी कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचाते हैं।


14 फरवरी को पुलवामा के अवंतीपोरा में हुआ यह बड़ा हमला कहीं न कहीं हमारी खुफिया एजेंसियों को भी कठघरे में खड़ा करता है। एनआईए और रॉ जैसी बड़ी एजेंसियों की मुस्तैदी के बावजूद इतना बड़ा हमला हो गया और उन्हें इसकी कानोंकान खबर तक नहीं हुई। इसलिए खुफिया तंत्र को भी पुनर्गठित करने की बड़ी आवश्यकता है ताकि ऐसे हमलों की पुनरावृति न हो सके। वैसे यह हमला गत 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरू को दी गई फांसी का बदला लेने के लिए किया गया था लेकिन यहां यह सवाल उठता है कि जम्मू-कश्मीर में इस फांसी को नाजायज ठहराने के लिए किन लोगों ने माहौल बनाया? कई साल गुजरने के बाद भी ऐसे लोगों की गतिविधियों को ट्रैप नहीं किया गया जो ऐजेंसियों की बड़ी चूक की ओर इशारा करता है। जम्मू-कश्मीर में स्थानीय खुफिया एजेंसियों की गतिविधियों से लगता है कि वे सभी निष्क्रिय होकर रह गई हैं। स्थानीय एजेंसियों की ही जिम्मेदारी है कि किसी भी गतिविधि को समय रहते टैप करें और अपनी सूचनाओं का आदान-प्रदान राष्टÑीय एजेंसियों से करें।


इस हमले के जवाब में सरकार ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया है। सरकार का यह कदम सराहनीय है। ऐसे हमले रोकने के लिए अंतर्राष्टÑीय स्तर पर कूटनीतिक कदम उठाने की भी अविलंब जरूरत है। यों तो कई दशकों से पाकिस्तान अपनी हरकतों से भारत को घाव देता रहा है लेकिन अब उसकी हरकतों पर पूर्ण विराम लगाने की बड़ी रणनीति अपनानी होगी। अपनी कूटनीतिक चाल से पाकिस्तान को इस राजनीति को बंद करने के लिए बाध्य करना होगा जो उसने भारत को अस्थिर करने के लिए बना रखी है।